पढ़ा लिखा मैं कलमकार, घर पर बैठा हूं बेकार
समाज करता तिरस्कार, दोस्तो मैं भी हूँ बेरोजगार
भारत मे मै एक नही हूँ, मेरे जैसे लाखो है
कुछ बने फिर रहे अंधभक्त, कुछ तो युवा नेता है
मजदूरी के साथ साथ, कुछ प्राइवेट नौकरी करते है
कुछ घर में बैठकर सिर्फ, 1.5 gb खर्चा करते है.........!!!
"Full poem in caption"-
बेरोजगारी के तानों से
दर्द नहीं होता साहब ,
दर्द तो तब होता है
जब खुद पर ही
भरोसा ना रहें ।-
बेरोजगार
अपनी काबलियत देखकर समंदर को पसीना आएगा।
सरकार किसी की भी हो पर अपना टाइम कब आएगा।-
राजीनीति की खाट पर, बन्धा पड़ा विकास
बेरोजगारी खेल रही, स्मार्ट फ़ोन पर ताश-
"ढोलक में माँ"
( सम्पूर्ण कविता अनुशीर्षक में )
हमेशा की तरह आप सब का स्नेह और आशीष का आकांक्षी रहूँगा कृपया मार्गदर्शन जरूर करे।-
हर चीज की एक कीमत अदा होती है।
तुम समझा करो मोहब्बत भी एक सजा होती है।
जब बेरोजगारी का आलम हो,तो ये जिंदगी भी खपा होती है।
दोस्त यार सब दूर हो जाते हैं, जब गरीबी जी छांव होती हैं।-
घर की दीवार भी अब टूट कर मुँह चिढ़ा रही,
बेरोजगारी के जश्न में सबको शरीक होना था।-
घर घर का व्यापार निकल गई सरकार
बनाए बड़े-बड़े माल हम हो गए बेरोजगार
लाई ई - शॉपिंग कर गई खाली बाजार
कभी कभी आए विचार , कल के थे मालिक नौकर बना गई सरकार
एक मालिक करे मनमानी नहीं उस पर कोई लगाम
करे शोषण हम है बेरोजगार
काम ज्यादा कीमत कम पर कराए काम
नहीं है कोई अपना अधिकार , जब चाहे बोले करो आराम
पूंजीवादी निगल गई गरीबों का अधिकार
नहीं रहा अब बाजार ऑनलाइन की है सरकार
।। अनिल प्रयागराज वाला ।।-
कहने को तो भगवान ने ये दुनिया बनायी है पर बेरोजगार तो खुद अपनी एक अलग ही दुनिया बना लेते हैं जिसमें उनके अलावा और कोई नहीं रहता
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बेरोजगारी टैग हटाने के मौके दे दो,
हम कबसे हैं तैयार हो बेकार बैठे,
ए सियासत करने वालो!
हमें भी सरकारी नौकरी करने के सुअवसर दे दो।-